फ्रांस में सोमवार को एक बड़ा राजनीतिक संकट पैदा हो गया, जब प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बेरो की सरकार संसद में विश्वास मत हासिल करने में असफल रही। यह विश्वास प्रस्ताव राष्ट्रीय ऋण और वित्तीय घाटे पर नियंत्रण की योजना को लेकर लाया गया था, जिसका उद्देश्य देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को संभालना था। मगर सरकार को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला, और यह अविश्वास प्रस्ताव गिर गया।
अब राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को अगले दो साल से भी कम समय में पांचवें प्रधानमंत्री की तलाश करनी होगी, जो देश को न केवल आर्थिक संकट से निकाले, बल्कि राजनीतिक स्थिरता भी प्रदान कर सके।
क्यों लाया गया था विश्वास प्रस्ताव?
फ्रांस की संसद में यह विश्वास प्रस्ताव सरकारी खर्चों में कटौती और राष्ट्रीय ऋण पर लगाम लगाने के उद्देश्य से पेश किया गया था। देश पर बढ़ते ऋण और बजट घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने सख्त वित्तीय सुधारों का प्रस्ताव रखा था, जिसमें पेंशन सुधार, सब्सिडी में कटौती और सरकारी योजनाओं की समीक्षा शामिल थी।
लेकिन विपक्षी दलों ने इस योजना को गरीब विरोधी और जनविरोधी करार दिया। उनका आरोप था कि यह योजना सामान्य नागरिकों पर बोझ बढ़ाएगी, जबकि अमीरों और कॉरपोरेट्स को राहत मिलेगी।
संसद में असफलता के पीछे के कारण
प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बेरो की सरकार को इस विश्वास प्रस्ताव के लिए 289 वोटों की जरूरत थी, लेकिन उन्हें केवल 271 सांसदों का समर्थन मिला। कुछ सहयोगी दलों ने वोटिंग से दूरी बना ली, जबकि कुछ सांसदों ने विरोध में मतदान किया। इससे यह साफ हो गया कि सरकार संसद में अपना बहुमत खो चुकी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बेरो सरकार के खिलाफ यह असफलता न केवल आर्थिक नीतियों की विफलता है, बल्कि यह सत्ता में गिरती लोकप्रियता और राजनीतिक विश्वास की कमी को भी दर्शाता है।
राष्ट्रपति मैक्रों के सामने नई चुनौती
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों अब नई सरकार के गठन की प्रक्रिया में लग गए हैं। लेकिन समस्या यह है कि फ्रांस की राजनीति इस समय बेहद बंटी हुई है — ना तो किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत है और ना ही कोई स्थायी गठबंधन नजर आ रहा है।
पिछले दो वर्षों में फ्रांस को पहले ही चार प्रधानमंत्री बदलने पड़े हैं। अब पांचवें प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति मैक्रों के लिए राजनीतिक संतुलन साधने का एक और कठिन प्रयास होगा।
जनता में नाराजगी और प्रदर्शन
बेरो सरकार की नीतियों के खिलाफ पहले से ही सार्वजनिक आक्रोश था। पेंशन सुधार और महंगाई को लेकर देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन और हड़तालें चल रही थीं। अब सरकार गिरने के बाद विपक्षी दल इस मुद्दे को और अधिक भुनाने की कोशिश करेंगे, जिससे फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता और गहराने की आशंका है।