भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते आर्थिक तनाव के बीच अब H1B वीजा को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गृह राज्य फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डिसैंटिस ने H1B वीजा प्रोग्राम पर तीखा हमला किया है। उनका कहना है कि यह वीजा प्रोग्राम एक तरह का “स्कैम” बन चुका है, क्योंकि इसके तहत आने वाले ज्यादातर वीजा धारक भारत से ही आते हैं। उन्होंने इसे एक “कॉटेज इंडस्ट्री” बताया, जो मुख्य रूप से भारत पर निर्भर है। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब अमेरिका में H1B वीजा और ग्रीन कार्ड प्रोग्राम को बंद करने की मांग जोर पकड़ रही है।
फ्लोरिडा के गवर्नर क्या कहते हैं?
रॉन डिसैंटिस ने कहा है कि H1B वीजा धारकों की संख्या में भारत का वर्चस्व साफ तौर पर देखा जा सकता है। वे अमेरिका की टेक कंपनियों और अन्य सेक्टरों में काम करते हैं, लेकिन इसका नकारात्मक असर अमेरिकी रोजगार बाजार पर पड़ रहा है। उनका आरोप है कि H1B वीजा धारकों को नौकरियों में प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे अमेरिकी नागरिक बेरोजगार हो रहे हैं। कंपनियां सस्ती और अनुभवी मजदूरों को चुन रही हैं, जिससे स्थानीय अमेरिकी कर्मचारियों को नुकसान पहुंच रहा है। गवर्नर डिसैंटिस का मानना है कि इस नीति से अमेरिका के लोगों में आक्रोश बढ़ेगा और इसे तुरंत सुधारने की आवश्यकता है।
कमर्शियल सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक की राय
इस विवाद में अमेरिका के कमर्शियल सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में H1B वीजा प्रोग्राम को “घोटाला” करार दिया। लुटनिक ने कहा कि अब समय आ गया है कि अमेरिका अपनी नीतियों को बदलें और नौकरियां अमेरिकी नागरिकों को दें। उनका कहना है कि इस वीजा प्रोग्राम के तहत कंपनियां उन लोगों को रोजगार देती हैं, जो कम सैलरी पर काम करने को तैयार रहते हैं, जिससे अमेरिका के कर्मचारियों को नुकसान होता है।
उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिकी नागरिक औसतन $75,000 सालाना कमाते हैं, जबकि ग्रीन कार्ड धारक $66,000 सालाना कमाते हैं। कंपनियां इन्हीं सस्ते श्रमिकों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर कम मिल रहे हैं।
H1B वीजा प्रोग्राम पर क्यों विवाद?
H1B वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है जो अमेरिका में विशेष तकनीकी और पेशेवर कौशल वाले विदेशी कर्मचारियों को काम करने की अनुमति देता है। भारत से बड़ी संख्या में इंजीनियर, आईटी प्रोफेशनल, और तकनीकी कर्मचारी इस वीजा के तहत अमेरिका जाते हैं।
हालांकि इस वीजा प्रोग्राम का मकसद अमेरिका की कंपनियों को वैश्विक प्रतिभा तक पहुंच प्रदान करना है, लेकिन आलोचक इसे अमेरिकी युवाओं के लिए रोजगार की बाधा मानते हैं। वे दावा करते हैं कि कंपनियां सस्ते विदेशी श्रमिकों को प्राथमिकता देकर स्थानीय रोजगार बाजार को प्रभावित कर रही हैं।
संभावित परिणाम
फ्लोरिडा के गवर्नर और अन्य रिपब्लिकन नेताओं की इस मांग के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या अमेरिकी सरकार H1B वीजा प्रोग्राम को बंद या कड़ा कर देगी। यदि ऐसा हुआ, तो इससे न केवल अमेरिका में काम करने वाले भारतीय प्रवासियों की संख्या घटेगी, बल्कि भारत-अमेरिका संबंधों पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ेगा।
भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक सहयोग के लिहाज से यह विवाद एक नई चुनौती साबित हो सकता है, खासकर तब जब दोनों देशों के बीच व्यापारिक और तकनीकी साझेदारी बढ़ रही है। वहीं, भारतीय प्रवासियों और उनके परिवारों के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है कि वे भविष्य में अमेरिका में अपनी नौकरी और स्थायी निवास कैसे बनाए रखेंगे।
निष्कर्ष
H1B वीजा को लेकर यह विवाद सिर्फ रोजगार का ही मुद्दा नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की इमिग्रेशन पॉलिसी, आर्थिक हितों और भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों का भी एक संवेदनशील पहलू बन चुका है। आने वाले महीनों में इस विवाद का आगे क्या रूप होगा, यह देखने वाली बात होगी।