वैदिक पंचांग के अनुसार, 27 दिसंबर यानी आज वैभव लक्ष्मी व्रत है। यह पर्व हर शुक्रवार के दिन मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर प्रातः काल से मंदिरों में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जा रही है। वहीं, सामान्य जन अपने घरों पर धन की देवी मां लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा कर रहे हैं। साथ ही मां लक्ष्मी के निमित्त व्रत रख रहे हैं। इस व्रत को करने से आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही घर में सकारात्मक शक्ति का संचार होता है। इस वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष के अंतिम शुक्रवार पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। आइए, पंडित हर्षित शर्मा जी से आज का पंचांग (Aaj ka Panchang 27 December 2024) जानते हैं-
🌕🌞 श्री सर्वेश्वर पञ्चाङ्गम् 🌞 🌕
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🚩🔱 धर्मो रक्षति रक्षितः🔱 🚩
🌅पंचांग-27.12.2024🌅
युगाब्द - 5125
संवत्सर - कालयुक्त
विक्रम संवत् -2081
शाक:- 1946
ऋतु- शिशिर __ उत्तरायण
मास - पौष _कृष्णपक्ष
वार - शुक्रवार
तिथि_ द्वादशी 26:26:06
नक्षत्र विशाखा 20:27:39
योग धृति 22:36:00
करण कौलव 13:39:08
करण तैतुल 26:26:06
चन्द्र राशि - तुला till 13:55
चन्द्र राशि -वृश्चिकfrom 13:55
सूर्य राशि - धनु
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩
✍️ महापात 14/35 से 21/ 35
🍁 अग्रिम (आगामी) पर्वोत्सव 🍁
🔅 प्रदोष व्रत
. 28 दिसंबर 2024
(शनिवार)
🔅 देव पितृ सोमवती अमावस
. 30 दिसंबर 2024
(सोमवार)
🔅 विनायक चतुर्थी
. 04 जनवरी 2025
(शनिवार)
🔅 दुर्गाष्टमी
. 07 जनवरी 2025
(मंगलवार)
🔅 पुत्रदा एकादशी
. 10 जनवरी 2025
(शुक्रवार)
🔅 प्रदोष व्रत
. 11 जनवरी 2025
(शनिवार)
🔅 सत्य पूर्णिमा व्रत
. 13 जनवरी 2025
(सोमवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉️
🌸🌸 श्रीहरि: 🌸🌸
“सन्त विचार”
श्रीमद्भगवद्गीता में आया है---
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ||
‘यह सत्य-तत्त्व नित्य रहने वाला, सबमें परिपूर्ण, अचल, स्थिर स्वभाव वाला और अनादि है |’
जैसे, गंगाजी निरन्तर बहती रहती हैं, पर जिसके ऊपर बहती हैं, वह आधारशिला ज्यों-की-त्यों स्थिर रहती है |
गंगाजी का जल कभी स्वच्छ होता है, कभी मटमैला होता है | कभी जल कम हो जाता है, कभी बाढ़ आ जाती है |
कभी गरम जल हो जाता है, कभी ठण्डा हो जाता है | कभी तेज प्रवाह के कारण जल आवाज करने लगता है, कभी शान्त हो जाता है | परन्तु आधारशिला ज्यों-की-त्यों रहती है, उसमें कभी कोई फर्क नहीं पड़ता |
इसी तरह कभी जल में मछलियाँ आ जाती हैं, कभी सर्प आदि जन्तु आ जाते हैं, कभी लकड़ी के सिलपट तैरते हुए आ जाते हैं, कभी पुष्प बहते हुए आ जाते हैं, कभी गोबर आ जाता है, कभी कोई मुर्दा बहता हुआ आ जाता है, कभी कोई जीवित व्यक्ति तैरता हुआ आ जाता है |
ये सब तो आकर चले जाते हैं, पर आधारशिला ज्यों-की-त्यों अचल रहती है | ऐसे ही सम्पूर्ण अवस्थाएँ, परिस्थितियाँ, घटनाएँ, क्रियाएँ आदि निरन्तर बह रही है, पर सबका आधार स्वयं {सत्य-तत्त्व} ज्यों- का-त्यों अचल रहता है | परिवर्तन अवस्थाओं में होता है, तत्त्व में नहीं |
नारायण! नारायण!! नारायण!!!
जय जय श्री सीताराम
जय जय श्री ठाकुर जी की
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा)
व्याकरणज्योतिषाचार्य पुजारी -श्री राधा गोपाल मंदिर (जयपुर)