आज 6 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जा रही है. ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। कम ही लोग जानते हैं कि गुरु गोबिंद सिंह के बचपन का नाम गोबिंद राय था और जब उन्होंने सिखों के गुरु का पद संभाला तब वह केवल 9 वर्ष के थे। गुरु गोबिंद सिंह ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए बिताया। उन्होंने अपने जीवन से दूसरों के जीवन को भी प्रकाशित किया। हर साल उनके जन्मदिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। आज इस मौके पर हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ी खास बातें बताते हैं।
पटना में जन्म
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को नौवें सिख गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर पटना में हुआ था। उनके बचपन का नाम गोबिंद राय था। जन्म के बाद पहले 4 साल उन्होंने पटना में बिताए। 1670 में उनका परिवार पंजाब आ गया। मार्च 1672 में उनका परिवार हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित नानकी नामक स्थान पर पहुंचा। नानकी को आजकल आनंदपुर साहिब कहा जाता है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा यहीं हुई और उन्होंने फ़ारसी, संस्कृत का अध्ययन किया। योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल भी सीखा।
अपने पिता की शहादत के बाद गोबिंद राय गुरु गोबिंद सिंह बन गये
उस समय मुगलों का शासन था और औरंगजेब दिल्ली की गद्दी पर राज कर रहा था। यह वह समय था जब बहुत से लोगों का धर्म परिवर्तन किया जा रहा था। एक दिन गोबिंद राय के पिता और सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब ने बुलाया। जब गुरु तेग बहादुर अपने तीन अनुयायियों के साथ औरंगजेब के दरबार में पहुंचे, तो उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा गया। जब उन्होंने आज्ञा नहीं मानी तो गुरु तेग बहादुर और उनके अनुयायियों को कड़ी सजा दी गई और उनकी जान ले ली गई।
जब गोबिंद राय को अपने पिता की शहादत की खबर मिली तो उनका सिर गर्व से ऊंचा हो गया। इसके बाद बैसाखी के दिन 29 मार्च 1676 को गोबिंद राय को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया। उस समय वह केवल 9 वर्ष के थे। गुरु गोबिंद सिंह ने पंज प्यारों से अमृतपान किया और गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह बन गये। 10वें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही।
गुरु प्रथा समाप्त हो गई
गुरु गोबिंद सिंह सिखों के 10वें और अंतिम गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की और सिखों को अमृत वाहक और धर्म के प्रति समर्पित योद्धा बनाया। गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु प्रथा समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। इसके बाद गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के रूप में पूजा जाने लगा और गुरु प्रथा समाप्त हो गई।
जीवन के पांच सिद्धांत बताए
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा वाणी दी थी - वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की रक्षा के लिए मुगलों और उनके सहयोगियों के खिलाफ कई बार लड़ाई लड़ी। उन्होंने जीवन जीने के पांच सिद्धांत दिये। जिन्हें पंच ककार के नाम से जाना जाता है। पांच ककार का मतलब है 'क' शब्द से शुरू होने वाली वो 5 चीजें, जिन्हें हर खालसा सिख को पहनना चाहिए। ये पांच चीजें हैं केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्चा।