अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण 'कुशन' साबित हो रही है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों (PPAC) के अनुसार, चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले आठ महीनों (अप्रैल-नवंबर) में भारत ने एक दिलचस्प विरोधाभास देखा है: तेल का आयात बढ़ा है, लेकिन उस पर होने वाला खर्च काफी कम हुआ है।
आयात बिल में 12% की भारी बचत
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है और अपनी जरूरत का लगभग 88% हिस्सा आयात से पूरा करता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-नवंबर अवधि के दौरान भारत का तेल आयात बिल पिछले साल के 91.9 अरब डॉलर से घटकर 80.9 अरब डॉलर रह गया है।
यह 12% की गिरावट तब आई है जब आयात की मात्रा (Quantity) वास्तव में 2.4% बढ़ी है। पिछले साल इसी अवधि में भारत ने 159.5 मिलियन टन तेल खरीदा था, जो इस साल बढ़कर 163.4 मिलियन टन हो गया। सीधे शब्दों में कहें तो भारत ने पिछले साल की तुलना में ज्यादा तेल खरीदा, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट के कारण अरबों डॉलर बचा लिए।
कीमतों का गणित: $12 प्रति बैरल की गिरावट
इस बचत के पीछे का सबसे बड़ा कारण भारतीय क्रूड बास्केट की कीमतों में आई कमी है।
औसतन $12 प्रति बैरल की यह कमी वैश्विक स्तर पर तेल की प्रचुर आपूर्ति और मांग में आई सुस्ती का नतीजा है। विशेषज्ञों का मानना है कि OPEC+ देशों द्वारा उत्पादन कटौती को धीरे-धीरे कम करने और प्रमुख उत्पादक देशों द्वारा सप्लाई बढ़ाने से कीमतों पर दबाव बना रहा।
घरेलू उत्पादन में गिरावट और बढ़ती निर्भरता
जहाँ एक ओर सस्ता आयात बिल राहत दे रहा है, वहीं दूसरी ओर घरेलू मोर्चे पर स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। भारत की तेल आयात पर निर्भरता घटने के बजाय बढ़ती जा रही है:
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उत्पादन में सुस्ती: अप्रैल-नवंबर के दौरान घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन 18.8 मिलियन टन रहा, जो पिछले साल के 19.1 मिलियन टन से भी कम है।
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बढ़ती खपत: इसी अवधि में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत बढ़कर 160.2 मिलियन टन हो गई है।
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आयात की हिस्सेदारी: घरेलू उत्पादन कम होने के कारण पेट्रोलियम उत्पादों की कुल खपत में आयातित तेल की हिस्सेदारी पिछले साल के 88.1% से बढ़कर 88.6% हो गई है।
भारत सरकार ने 2015 में एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा था कि 2022 तक आयात निर्भरता को घटाकर 67% किया जाएगा, लेकिन वास्तविकता में यह आंकड़ा 88% के पार बना हुआ है, जो ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से एक बड़ी चुनौती है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और ग्राहकों की उम्मीद
कच्चे तेल का आयात भारत के कुल आयात बिल का सबसे बड़ा हिस्सा होता है। कीमतों में कमी आने से व्यापार घाटा (Trade Deficit) कम होता है और विदेशी मुद्रा भंडार सुरक्षित रहता है। हालाँकि, सरकार ने अभी तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कटौती का कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां इस बचत का उपयोग अपने पिछले घाटों की भरपाई और भविष्य की अनिश्चितताओं के लिए फंड जुटाने में कर रही हैं।