अफगानिस्तान के तालिबान प्रशासन के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के मौजूदा भारत दौरे के दौरान दिल्ली स्थित अफगान दूतावास में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया। मुत्तकी द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस से ठीक पहले, उनकी टीम और दूतावास स्टाफ के बीच तालिबान के झंडे को लेकर जमकर बहस हुई, जिसके बाद अंततः मुत्तकी की टीम को दूतावास स्टाफ की बात माननी पड़ी।
दूतावास स्टाफ ने रोका तालिबान का झंडा
विवाद तब शुरू हुआ जब विदेश मंत्री मुत्तकी की टीम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस स्थल पर तालिबान सरकार (इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान) का झंडा लगाने का प्रयास किया। दूतावास के स्टाफ ने तुरंत इस पर आपत्ति जताई। स्टाफ का तर्क था कि भारत सरकार ने अभी तक तालिबान के झंडे को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है, और इसीलिए इसे दूतावास परिसर में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। वर्तमान में, दिल्ली में अफगान दूतावास पर अभी भी अफगानिस्तान की पिछली सरकार का ही झंडा लगा हुआ है। तालिबान के सत्ता में आने के बावजूद, भारत सहित कई देशों ने औपचारिक रूप से तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। दूतावास स्टाफ अपनी बात पर दृढ़ रहा और तालिबान के नए झंडे को लगाने से इनकार कर दिया, जिसके सामने मुत्तकी की टीम को झुकना पड़ा। यह घटना भारत की ओर से तालिबान को कूटनीतिक मान्यता न देने के स्पष्ट संकेत को रेखांकित करती है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की गैर-मौजूदगी
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से जुड़ा एक और विवाद महिला पत्रकारों की भागीदारी से संबंधित था। मुत्तकी द्वारा आयोजित इस संवाददाता सम्मेलन में महिला पत्रकारों की संख्या शून्य थी, और कुल 20 से भी कम पत्रकारों को एंट्री मिली थी। बताया जा रहा है कि कार्यक्रम में पत्रकारों की भागीदारी का फैसला मुत्तकी के साथ आए तालिबान के अधिकारियों ने लिया था। हालांकि, सूत्रों ने बताया कि भारतीय अधिकारियों ने पहले ही यह संदेश दे दिया था कि महिला पत्रकारों को भी कार्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र की चिंताएं और महिलाओं के अधिकार
यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, तालिबान प्रशासन के तहत अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के हनन पर लगातार चिंता व्यक्त कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में कहा था कि अफगान महिलाओं को कार्यबल में शामिल होने के अवसरों से वंचित किया जा रहा है और वे पुरुष रिश्तेदारों के बिना कई बुनियादी सेवाओं तक पहुंचने में असमर्थ हैं। इसके अलावा, लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित किए जाने का मुद्दा भी वैश्विक स्तर पर एक बड़ी चिंता बना हुआ है।