ट्रेन दुर्घटना में माँ हथिनी की मौत; घायल बच्ची चमत्कारिक ढंग से बची; भारत के पहले हाथी अस्पताल में चल रहा उपचार!
दुखद दुर्घटना में, पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में एक तेज़ रफ़्तार ट्रेन ने माँ हथिनी और उसकी बच्ची को कुचल दिया। टक्कर के प्रभाव से मां की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि हथिनी की बच्ची चमत्कारिक ढंग से बच कर पटरी से नीचे एक खेत में जा गिरी! हथिनी की बच्ची का नाम अब "बानी" रखा गया है जिसका अर्थ है “धरती माता”, दुर्घटना में घायल हुई बानी की रीढ़ और कूल्हे के जोड़ों में चोटें आईं हैं। उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारियों और वाइल्डलाइफ एसओएस ने हथिनी की बच्ची को तत्काल देखभाल प्रदान करी जिसके बाद उसे मथुरा स्थित हाथी अस्पताल में उचित चिकित्सकीय उपचार के लिए लाया गया है।
एक रोकी जा सकने वाली लेकिन दुखद दुर्घटना में, कॉर्बेट नेशनल पार्क क्षेत्र के पास रेल की पटरी पार करते समय एक हथिनी और उसकी बच्ची को तेज गति से आ रही ट्रेन ने टक्कर मार दी। दुख की बात है कि माँ की मौके पर ही मृत्यु हो गई, उसका शव रेलवे ट्रैक पर लहुलुहान पड़ा था l यह घटना वन्यजीवों के लिए बढ़ते संघर्ष और असहिष्णुता की एक बहुत ही दुखद कहानी है। अनाथ हुई हथिनी की बच्ची को वन अधिकारियों ने नीचे मैदान में घायल अवस्था में पड़ा देखा।
*वाइल्डलाइफ एसओएस के पशुचिकित्सा सेवाओं के उप-निदेशक, डॉ. इलियाराजा ने कहा*, “बानी के कमर के क्षेत्र में एक संक्रमित घाव है, जिसका वर्तमान में इलाज किया जा रहा है। हमें उसके अगले पैरों को अच्छी तरह हिलते हुए देखकर खुशी हुई। शुरुआत में हमें रीढ़ की हड्डी में चोट का संदेह था, लेकिन उसकी पूंछ में हलचल, पाचन और शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली से संकेत मिलता है कि उसका शरीर इलाज पर अच्छी प्रतिक्रिया दे रहा है।'
*वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यनारायण ने कहा*, “हम घायल बानी को मथुरा के हाथी अस्पताल में स्थानांतरित करने हेतु शीघ्र अनुमति जारी करने के लिए उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के आभारी हैं। उसे ठीक होने और जीवित रहने का हर मौका देने के लिए उच्च स्तर की पशु चिकित्सा देखभाल प्रदान की जा रही है।"
*वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव, गीता शेषमणि ने कहा*, “ट्रेन की टक्कर से हर साल हजारों जानवर मारे जाते हैं। रेलवे देश भर में वन्यजीव गलियारों में गति को तुरंत कम कर सकता है, ताकि हाथियों और अन्य वन्यजीवों को बचाया जा सके। आज के आधुनिक ज़माने में यह संभव है की हाथियों के रेलवे ट्रैक पार करने की जानकारी उन्हें मिल सके और ट्रेन को सचेत कर सके।
*वाइल्डलाइफ एसओएस के डायरेक्टर कंज़रवेशन प्रोजेक्ट्स, बैजूराज एम.वी. ने कहा*, “हथिनी की बच्ची “बानी” 9 महीने की है। संक्रमण से बचाव के लिए हर दिन उसकी सफाई और मालिश की जाती है और उसके घावों पर पट्टी बाँधी जाती है। इसके अतिरिक्त, उसके जोड़ों के व्यायाम के लिए लेजर थेरेपी और फिजियोथेरेपी भी प्रदान की जा रही है।
ट्रेनों से हाथियों की मौत को रोका जा सकता है। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, 2010 और 2020 के बीच ट्रेन की टक्कर में लगभग 200 हाथी मारे गए, मतलब औसतन हर साल लगभग 20 हाथी मारे गए। ट्रेन की टक्कर से हाथियों की मृत्यु की समस्या को ख़त्म करने के लिए, वाइल्डलाइफ एसओएस ने एक याचिका शुरू की है, जिससे इस समस्या से उचित तरीके से निपटा जा सके।