उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने हाल ही में अपने देश की पहली “परमाणु शक्ति संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी” (SSBN) के निर्माण का ऐलान किया था। इस पनडुब्बी को उत्तर कोरिया की नौसैनिक ताकत में एक बड़ा बदलाव बताया जा रहा था। किम जोंग खुद इसे परमाणु शक्ति में बढ़ोतरी और अमेरिका तक हमला करने की क्षमता वाला हथियार बता रहे थे। लेकिन हकीकत कुछ और ही निकली है।
तकनीकी रूप से कमजोर पनडुब्बी
विशेषज्ञों के मुताबिक, उत्तर कोरिया का नया पनडुब्बी प्रोजेक्ट फिलहाल हथियारों की दौड़ में बने रहने की उसकी कोशिश लगती है, मगर तकनीकी रूप से यह काफी पीछे है। आसान भाषा में कहें तो यह पनडुब्बी दुनिया की सबसे शक्तिशाली नौसेनाओं के सामने "सुतली बम" से ज्यादा कुछ नहीं।
पुरानी तकनीक, नई बयानबाजी
किम जोंग ने इस पनडुब्बी को एक अज्ञात शिपयार्ड में खड़े होकर बड़े गर्व से दिखाया था। उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया ने इसे देश की पहली परमाणु-संचालित पनडुब्बी बताया था, जो Pukguksong-6 मिसाइलों से लैस है और 12,000 किलोमीटर दूर तक हमला कर सकती है। इसका मतलब है कि यह अमेरिका तक भी पहुंच सकती है। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर कोरिया की यह पनडुब्बी तकनीकी रूप से कई दशक पीछे है और अमेरिका, जापान या दक्षिण कोरिया की पनडुब्बियों के सामने टिक नहीं सकती।
उत्तर कोरिया की सीमित क्षमता
दक्षिण कोरियाई रक्षा विशेषज्ञ डोंगक्यून ली के मुताबिक, उत्तर कोरिया में अभी SSBN यानी बैलिस्टिक मिसाइल ले जाने वाली आधुनिक पनडुब्बी बनाने की पर्याप्त क्षमता नहीं है। उन्होंने कहा कि किम जोंग की नई पनडुब्बी असल में उनकी महत्वाकांक्षा और हकीकत के बीच की गहरी खाई को दर्शाती है। इससे पहले भी उत्तर कोरिया की "हीरो किम कुन ओक" नामक पनडुब्बी को बनाने में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था।
सोवियत काल की तकनीक पर निर्भरता
विशेषज्ञों के मुताबिक, उत्तर कोरिया की सेना अभी भी 1957 में बनी सोवियत संघ की पुरानी रोमियो-क्लास पनडुब्बियों का इस्तेमाल कर रही है। इतना ही नहीं, किम जोंग की वायुसेना में अब भी 1947 के दौर के MiG-15 लड़ाकू विमान शामिल हैं, जो बाकी देशों में कबाड़ में जा चुके हैं। ऐसे में उत्तर कोरिया की नई पनडुब्बी को गेम चेंजर बताना केवल बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं।
निष्कर्ष
उत्तर कोरिया का यह नया पनडुब्बी प्रोजेक्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी मौजूदगी दर्ज कराने और सैन्य ताकत बढ़ाने की उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक तकनीकी रूप से मजबूत पनडुब्बी नहीं बनाई जाती, तब तक यह केवल प्रचार और बयानबाजी ही मानी जाएगी।