अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के कद्दावर नेता डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दुनिया को साफ संदेश दिया है कि वे टैरिफ (आयात शुल्क) से पीछे हटने को कतई तैयार नहीं हैं। भले ही अमेरिका के शेयर बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है, आर्थिक अस्थिरता बनी हुई है, लेकिन ट्रंप का रुख बेहद सख्त और स्पष्ट है। उन्होंने हाल ही में घोषित नए टैरिफ चार्ट को वापस लेने से इनकार करते हुए कहा कि अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए यह कदम बेहद ज़रूरी है।
ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है जब वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मची हुई है, कई देश अमेरिका के खिलाफ जवाबी टैरिफ लागू कर चुके हैं और घरेलू स्तर पर महंगाई भी तेजी से बढ़ी है। बावजूद इसके, ट्रंप टैरिफ को एक प्रभावशाली आर्थिक हथियार मानते हुए इससे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
व्हाइट हाउस में पत्रकारों से की साफगोई
ट्रंप ने सोमवार को व्हाइट हाउस में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान साफ शब्दों में कहा कि वे टैरिफ के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, "हम टैरिफ वापस लेने पर विचार नहीं कर रहे हैं। बहुत से देश हमारे साथ सौदे करना चाहते हैं और ये सौदे निष्पक्ष और संतुलित होंगे। कुछ मामलों में वे आवश्यक टैरिफ का भुगतान करने को भी तैयार हैं।"
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि टैरिफ अमेरिका की आर्थिक मजबूती के लिए एक रणनीतिक कदम है और यह वैश्विक व्यापार असंतुलन को ठीक करने में मददगार साबित होगा।
नेतन्याहू के साथ बैठक में भी टैरिफ का जिक्र
ट्रंप की यह टिप्पणी उस वक्त आई जब वे इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ वाशिंगटन स्थित ओवल ऑफिस में बैठक कर रहे थे। दोनों नेताओं के बीच विभिन्न द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन टैरिफ एक मुख्य विषय रहा। इस दौरान ट्रंप ने स्पष्ट किया कि इजरायल सहित सभी साझेदार देशों को अमेरिका के हितों को ध्यान में रखते हुए व्यापार समझौते करने होंगे।
इजरायल की प्रतिक्रिया: व्यापार घाटा कम करने का वादा
इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ट्रंप के टैरिफ फैसले पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इस बात की घोषणा की कि इजरायल अमेरिका के साथ व्यापार घाटे को तेजी से समाप्त करने की योजना पर काम करेगा। नेतन्याहू ने माना कि अमेरिका ने अपने व्यापारिक हितों की सुरक्षा के लिए जो कदम उठाया है, वह जायज है।
उन्होंने कहा, "हमारा इरादा है कि अनावश्यक व्यापार बाधाओं को खत्म कर अमेरिका के साथ बेहतर और संतुलित व्यापारिक संबंध स्थापित करें। हमें उम्मीद है कि इजरायल अन्य देशों के लिए एक आदर्श बन सकेगा।"
व्यापार घाटा: आकड़ों की नजर से
संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में अमेरिका और इजरायल के बीच माल व्यापार घाटा $7.4 बिलियन रहा, जो कि 2023 की तुलना में 8.6 प्रतिशत ($587.0 मिलियन) ज्यादा था। यह आंकड़ा ट्रंप प्रशासन के उन दावों की पुष्टि करता है जिनमें कहा गया है कि कई देश अमेरिका से ज्यादा निर्यात कर रहे हैं और अमेरिका घाटे में है।
ट्रंप ने इसी असंतुलन को दूर करने के लिए टैरिफ जैसे कदमों की शुरुआत की है। उनके अनुसार, जब तक यह घाटा संतुलित नहीं होता, तब तक टैरिफ जैसी नीति को बदला नहीं जा सकता।
टैरिफ का असर: वैश्विक प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप की इस टैरिफ नीति से दुनियाभर के कई देश प्रभावित हुए हैं। यूरोपीय संघ, चीन, भारत और कनाडा जैसे देशों ने अमेरिका के खिलाफ जवाबी टैरिफ लगाए हैं। इसके चलते वैश्विक व्यापार युद्ध जैसी स्थिति बनती जा रही है।
ट्रंप की इस नीति का असर सिर्फ अन्य देशों पर ही नहीं, बल्कि अमेरिकी उपभोक्ताओं और उद्योगों पर भी पड़ा है। महंगाई में तेजी से इज़ाफा हुआ है। सोना-चांदी, पेट्रोल-डीजल और एलपीजी जैसे जरूरी उत्पाद महंगे हो चुके हैं।
हालांकि ट्रंप का तर्क है कि यह अल्पकालिक प्रभाव है और दीर्घकाल में अमेरिका को इसका लाभ मिलेगा। उनके अनुसार, विदेशी कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा कि वे अमेरिका में उत्पादन शुरू करें, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और घरेलू उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा।
शेयर बाजार में गिरावट, लेकिन ट्रंप अडिग
ट्रंप के टैरिफ निर्णयों का असर अमेरिका के शेयर बाजारों पर भी पड़ा है। पिछले सप्ताह से लगातार शेयर बाजार गिरावट में हैं, निवेशकों में अस्थिरता है।
इस विषय पर पूछे जाने पर ट्रंप ने कहा कि वित्तीय बाजारों की अनिश्चितता कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा, "शेयर बाजार ऊपर-नीचे होते रहते हैं, लेकिन हमारी नीतियां स्थिर और देशहित में हैं। हमें अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को देखते हुए नीतियां बनानी होंगी, न कि बाजार की हर हलचल पर प्रतिक्रिया देते हुए।"
राजनीतिक विश्लेषण: चुनावी रणनीति भी?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह टैरिफ रुख महज आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है। 2024 में ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए फिर से मैदान में उतरने की घोषणा की थी। ऐसे में अमेरिका फर्स्ट की उनकी नीति के तहत टैरिफ एक मजबूत चुनावी हथियार साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप वैश्विकरण के खिलाफ एक राष्ट्रवादी एजेंडा चला रहे हैं, जहां घरेलू उद्योग और रोजगार को प्राथमिकता दी जा रही है। इस एजेंडे के तहत टैरिफ एक अहम भूमिका निभा रहा है।
निष्कर्ष: टैरिफ से पीछे हटना नहीं आसान
डोनाल्ड ट्रंप की इस दोटूक नीति से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका अब वैश्विक व्यापार में बराबरी की मांग कर रहा है। टैरिफ को लेकर उनकी अडिगता यह संकेत देती है कि अमेरिका अब छूट देने की नीति से हटकर संतुलित सौदों की ओर बढ़ रहा है।
हालांकि इसका तत्काल असर वैश्विक व्यापार और उपभोक्ताओं पर पड़ा है, लेकिन ट्रंप इसे एक दीर्घकालिक सुधार प्रक्रिया के रूप में देख रहे हैं। इजरायल जैसे सहयोगी देश अगर अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन की दिशा में कदम उठाते हैं, तो यह नीति और भी मजबूत हो सकती है।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि बाकी देश ट्रंप की इस नीति पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं और अमेरिका किस हद तक अपने टैरिफ एजेंडे को वैश्विक व्यापार में लागू कर पाता है।