बुद्ध बनने से पहले, वह सिद्धार्थ गौतम थे, जिनका जन्म एक शाही परिवार में हुआ था। लेकिन फिर भी उन्होंने सभी सुख-सुविधाओं का त्याग कर तपस्या और समर्पण को अपनाया। एक दिन सिद्धार्थ गौतम रात में चुपचाप महल छोड़कर सत्य और ज्ञान की खोज में जंगल की ओर चल दिये। इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या की और परम ज्ञान प्राप्त किया। बोधि दिवस को गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है। बुद्ध का अर्थ है जागृत या प्रबुद्ध व्यक्ति। गौतम बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापक माना जाता है। बौद्ध धर्म दुनिया भर में अपनाए जाने वाले प्रमुख धर्मों में से एक है। बौद्ध धर्म आध्यात्मिक ज्ञान पर केंद्रित है। बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए बोधि दिवस बेहद खास दिन है, जो हर साल 8 दिसंबर को मनाया जाता है।
बोधि दिवस का इतिहास (बोधि दिवस 2023 का इतिहास)
राजकुमार सिद्धार्थ गौतम जो बाद में बौद्ध धर्म के संस्थापक बने। उनका जन्म 562 ईसा पूर्व लुंबिनी (अब नेपाल) में हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य वंश के राजा थे। एक बार सिद्धार्थ गौतम ने राज्य का दौरा किया, उन्होंने अपने चारों ओर गरीबी और बीमारी देखी और इसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि जब उन्होंने अपना घर छोड़ा तब उनकी उम्र 29 साल थी. जीवन का अर्थ खोजने के लिए उन्होंने 6 वर्षों तक गहन आत्मनिरीक्षण, तपस्या और ध्यान किया। अंततः उन्हें बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। बोधि दिवस उस क्षण की याद दिलाता है जब सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ और वे बुद्ध के रूप में जागृत हुए। ये सब करीब ढाई हजार साल पहले हुआ था.
बोधि दिवस कैसे मनाया जाता है?
इस दिन को पूरी दुनिया में बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। बोधि दिवस मनाने का मुख्य आकर्षण सभी के लिए अच्छा करना, जीवन के महत्वपूर्ण सबक याद रखना, जीवन का अर्थ खोजना और आध्यात्मिकता की नींव को मजबूत करना है। आमतौर पर इस दिन लोग बोधि वृक्ष की तरह अंजीर के पेड़ों को भी सजाते हैं। क्योंकि बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान किया था। इस दिन बौद्ध भिक्षु विशेष पूजा भी करते हैं।