अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) ने इस साल पहली बार ब्याज दरों में कटौती की है। इस निर्णय के तहत, फेड ने 25 बेसिस प्वाइंट यानी 0.25% की कटौती की है, जिससे अब फेड की बेंचमार्क ब्याज दर 4% से 4.25% के दायरे में आ गई है। यह फैसला न सिर्फ अमेरिका की अर्थव्यवस्था बल्कि पूरी दुनिया के वित्तीय बाजारों के लिए भी अहम माना जा रहा है, खासतौर पर भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए।
फेडरल रिजर्व की इस दो दिवसीय बैठक की अध्यक्षता US Fed चेयरमैन जेरोम पॉवेल (Jerome Powell) ने की। इस बैठक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार, महंगाई और रोजगार के आंकड़ों की समीक्षा की गई। फेड की नीति निर्धारण समिति FOMC (Federal Open Market Committee) ने कहा कि अमेरिका की आर्थिक गतिविधियां सुस्त हुई हैं और रोजगार की गति भी धीमी पड़ी है। इसके साथ ही, अमेरिका में महंगाई में भी थोड़ी वृद्धि दर्ज की गई है।
इस निर्णय का एक बड़ा उद्देश्य है मंहगाई पर नियंत्रण पाना। वर्तमान में अमेरिका टैरिफ और ट्रेड वार (व्यापार युद्ध) की स्थिति से गुजर रहा है, जिसकी वजह से कीमतों में अस्थिरता देखी गई। विशेषज्ञों का मानना है कि रेट कट से वस्तुओं और सेवाओं की लागत में कुछ हद तक गिरावट आ सकती है, जिससे मंहगाई पर अंकुश लग सकता है।
भारत पर असर
फेड द्वारा ब्याज दरों में कटौती का असर भारतीय शेयर बाजार और रुपए की विनिमय दर पर भी देखने को मिल सकता है। FII (Foreign Institutional Investors) आमतौर पर उन बाजारों में निवेश को प्राथमिकता देते हैं जहां रिटर्न अधिक हो। जब अमेरिका में ब्याज दरें घटती हैं, तो विदेशी निवेशक भारत जैसे विकासशील देशों की ओर रुख करते हैं। इससे भारतीय बाजार में पूंजी प्रवाह बढ़ता है, जो शेयर बाजार को मजबूती दे सकता है।
भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानी जाती है। हाल के समय में सरकार द्वारा किए गए कर सुधार, बेहतर मानसून और मौद्रिक नरमी (Monetary Easing) ने निवेशकों का भरोसा बढ़ाया है। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही वैश्विक अनिश्चितता बनी हुई है, लेकिन विदेशी निवेशक लंबे समय तक भारत से दूर नहीं रह सकते।
निष्कर्ष
फेडरल रिजर्व का यह कदम वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में संतुलन लाने का एक प्रयास है। ब्याज दरों में कटौती से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, साथ ही भारत जैसे देशों के लिए यह अवसर भी है कि वे वैश्विक पूंजी को आकर्षित कर अपने विकास को और गति दें। आने वाले महीनों में यदि फेड और कटौती करता है, तो इसका असर वैश्विक बाजारों पर और गहराई से देखने को मिलेगा।