मुंबई, 03 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इंटरनेट पर पोर्न वीडियोज को प्रतिबंधित करने वाली याचिका पर तुरंत विचार करने से इनकार कर दिया। इस दौरान अदालत ने सितंबर में नेपाल में हुए GenZ प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा कि जब वहां सोशल मीडिया एप्स पर बैन लगाया गया, तो उसके नतीजे क्या हुए, यह सबने देखा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जल्दबाजी से फैसला लेना उचित नहीं होगा। 
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने वाली इस याचिका पर अब चार हफ्ते बाद सुनवाई की जाएगी। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस गवई 23 नवंबर को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं। याचिका में केंद्र सरकार से मांग की गई है कि देश में अश्लील कंटेंट पर रोक लगाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति (नेशनल पॉलिसी) तैयार की जाए। साथ ही बच्चों को इस तरह के कंटेंट से दूर रखने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि सोशल मीडिया और पब्लिक प्लेटफॉर्म से ऐसे वीडियोज को पूरी तरह हटाया जाना चाहिए।
याचिका में यह तर्क दिया गया है कि डिजिटलीकरण के इस दौर में इंटरनेट पर अरबों अश्लील वेबसाइट्स उपलब्ध हैं और सरकार खुद इस बात को स्वीकार कर चुकी है। कोविड के समय बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए डिजिटल डिवाइस दिए गए, लेकिन उनमें पोर्न साइट्स को ब्लॉक करने का कोई मजबूत सिस्टम नहीं था। इसके अलावा देश में पोर्न वीडियोज को हटाने के लिए अब तक कोई ठोस कानून भी नहीं बना है, जबकि इस तरह की सामग्री का सबसे अधिक प्रभाव 13 से 18 साल के किशोरों पर पड़ता है।
अदालत ने इस विषय पर पहले भी कई बार चिंता जताई है। 28 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अश्लीलता एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है और इस पर केंद्र सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। कोर्ट ने तब सरकार के साथ 9 OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। वहीं, 24 सितंबर 2024 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्स एजुकेशन को वेस्टर्न कॉन्सेप्ट मानना गलत है। इस शिक्षा का उद्देश्य युवाओं में अनैतिकता फैलाना नहीं, बल्कि जागरूकता बढ़ाना है। कोर्ट ने कहा था कि इसे भारतीय मूल्यों के खिलाफ बताकर कई राज्यों में प्रतिबंधित कर देना उचित नहीं है।