चीन की चर्चित और विवादित वन-चाइल्ड पॉलिसी से जुड़ा एक अध्याय उस वक्त फिर चर्चा में आ गया, जब इस नीति की पूर्व प्रमुख पेंग पेइयुन का बीते रविवार को बीजिंग में निधन हो गया। आमतौर पर किसी वरिष्ठ नेता के निधन पर सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि संदेश देखने को मिलते हैं, लेकिन पेंग पेइयुन के मामले में तस्वीर बिल्कुल उलट नजर आई। चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, खासकर माइक्रो-ब्लॉग वीबो पर, लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के बजाय उस वन-चाइल्ड पॉलिसी की आलोचना की, जिसने करोड़ों परिवारों के जीवन को प्रभावित किया।
सरकारी मीडिया ने पेंग पेइयुन को 1988 से 1998 तक चीन के फैमिली प्लानिंग कमीशन की प्रमुख के तौर पर याद किया। सरकारी बयान में कहा गया कि उन्होंने महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों में “एक बेहतरीन नेता” के रूप में काम किया। हालांकि, सरकारी मीडिया की यह तारीफ आम जनता की भावनाओं से मेल खाती नहीं दिखी।
एक-बच्चे की पॉलिसी का दर्द
रविवार को पेंग पेइयुन के निधन की खबर सामने आने के बाद वीबो पर कई तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। एक यूजर ने लिखा, “वे बच्चे जो खो गए थे, जो कभी इस दुनिया में आ ही नहीं सके, वे दूसरी दुनिया में आपका इंतजार कर रहे हैं।” इस तरह की पोस्ट्स ने यह साफ कर दिया कि वन-चाइल्ड पॉलिसी का दर्द आज भी लाखों लोगों के दिलों में जिंदा है।
गौरतलब है कि चीन में 1980 से 2015 तक लगभग हर दंपती के लिए सिर्फ एक बच्चा पैदा करने का नियम लागू था। इस नीति को लागू करने के लिए स्थानीय अधिकारियों को सख्त कदम उठाने के अधिकार दिए गए थे। कई इलाकों में महिलाओं को जबरन गर्भपात और नसबंदी के लिए मजबूर किया गया। कई परिवारों को भारी जुर्माने, सामाजिक बहिष्कार और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। यही वजह है कि इस नीति को आज भी चीन के आधुनिक इतिहास की सबसे विवादित नीतियों में गिना जाता है।
आबादी में तेजी से गिरावट
बीजिंग ने वन-चाइल्ड पॉलिसी की शुरुआत इसलिए की थी क्योंकि उस समय के नेताओं को डर था कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश के संसाधनों पर भारी दबाव डाल देगी। शुरुआती दशकों में इस नीति से जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार धीमी जरूर हुई, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम चीन के लिए गंभीर साबित हुए।
चीन की आबादी, जो लंबे समय तक दुनिया में सबसे ज्यादा थी, अब लगातार घट रही है। पिछले साल लगातार तीसरे साल चीन की जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई। सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा, “अगर वन-चाइल्ड पॉलिसी को 10 साल पहले ही खत्म कर दिया गया होता, तो आज चीन की आबादी इस तरह नहीं गिरती।” यह टिप्पणी उस सामूहिक पछतावे को दर्शाती है, जो अब नीति के असर को लेकर महसूस किया जा रहा है।
पेंग पेइयुन ने बाद में बदले विचार
दिलचस्प बात यह है कि 2010 के दशक तक पेंग पेइयुन ने खुद सार्वजनिक रूप से अपने विचारों में बदलाव किया था। उन्होंने यह स्वीकार किया था कि वन-चाइल्ड पॉलिसी में ढील दी जानी चाहिए और बदलते सामाजिक-आर्थिक हालात के मुताबिक इसमें सुधार जरूरी है। इसके बाद 2015 में चीन ने आधिकारिक रूप से इस नीति को खत्म कर दिया और पहले दो-बच्चे, फिर तीन-बच्चे की अनुमति दी गई।
आज स्थिति यह है कि चीन सरकार घटती जन्म दर से जूझ रही है। बीजिंग अब बच्चों के पालन-पोषण को प्रोत्साहित करने के लिए चाइल्डकेयर सब्सिडी, लंबी मैटरनिटी लीव, टैक्स बेनिफिट्स और अन्य सुविधाएं देने की कोशिश कर रहा है। इसके बावजूद युवा पीढ़ी शादी और बच्चे पैदा करने को लेकर हिचकिचा रही है।
अर्थव्यवस्था पर मंडराता खतरा
आबादी के घटने और तेजी से बूढ़े होते समाज ने चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कामकाजी उम्र की आबादी में कमी आने से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को आने वाले वर्षों में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
पेंग पेइयुन का निधन सिर्फ एक नेता के जाने की खबर नहीं है, बल्कि यह चीन को उस नीति की याद दिलाता है, जिसने देश की जनसांख्यिकीय संरचना को हमेशा के लिए बदल दिया। सोशल मीडिया पर उठी आलोचनाएं इस बात का संकेत हैं कि वन-चाइल्ड पॉलिसी का घाव अभी भरा नहीं है।