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भारतीय पासपोर्ट की कोई कीमत नहीं… ऐसा क्यों बोला इंजीनियर? सोशल मीडिया पर बवाल

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Posted On:Friday, December 26, 2025

यूनाइटेड किंगडम (UK) में रहने वाले भारतीय मूल के एक टेक प्रोफेशनल, कुणाल कुशवाहा के सोशल मीडिया पोस्ट ने इन दिनों इंटरनेट पर एक नई बहस छेड़ दी है। कुणाल का यह पोस्ट न केवल उनके व्यक्तिगत दर्द को बयां करता है, बल्कि विदेशों में रह रहे लाखों भारतीयों की उन समस्याओं को उजागर करता है, जिनका सामना वे अपने पासपोर्ट की कमजोर रैंकिंग के कारण करते हैं। कुणाल ने सीधे तौर पर कहा—"अब मेरी जिंदगी में भारतीय पासपोर्ट की कोई वैल्यू नहीं रह गई है।"

नौकरशाही की लंबी कतारें और वीजा का बोझ

कुणाल ने अपने पोस्ट में एक बेहद भावुक अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे वे आयरलैंड में रहने वाले अपने सबसे अच्छे दोस्त को उसके जन्मदिन पर सरप्राइज़ देना चाहते थे। एक सामान्य स्थिति में इंसान सिर्फ फ्लाइट की टिकट बुक करता है और पहुँच जाता है, लेकिन कुणाल के लिए यह एक 'नौकरशाही का दुःस्वप्न' (Bureaucratic Nightmare) बन गया। उन्हें टिकट के बजाय वीजा पोर्टल्स पर घंटों समय बिताना पड़ा।

कुणाल ने बताया कि कुछ समय पहले ही वे बर्लिन की यात्रा पर थे। नियमानुसार, एक शेंगेन वीजा के बाद दूसरे वीजा के लिए आवेदन करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं बचा था। नतीजा यह हुआ कि वे क्रिसमस पर डबलिन में अपने दोस्तों से नहीं मिल पाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि समस्या पैसों या समय की नहीं थी, बल्कि उस 'कागजी दीवार' की थी जो भारतीय पासपोर्ट उनके सामने खड़ी कर देता है।

[Image showing a comparison of Indian Passport ranking vs Singapore Passport ranking 2025]


"वीजा आवेदन एक फुल-टाइम नौकरी जैसा"

एयरपोर्ट के अनुभवों को साझा करते हुए कुणाल ने लिखा कि जब दूसरे देशों के लोग इमिग्रेशन काउंटर से तेजी से निकल जाते हैं, तब उन्हें डॉक्यूमेंट्स का भारी-भरकम फोल्डर लेकर लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ता है। उन्होंने शेंगेन वीजा (Schengen Visa) की प्रक्रिया को एक फुल-टाइम नौकरी की तरह बताया, जिसमें बार-बार बैंक स्टेटमेंट, कवर लेटर और होटल बुकिंग जैसे प्रमाण देने पड़ते हैं। यह अनुभव अब उन्हें गुस्सा नहीं दिलाता, बल्कि बुरी तरह थका देता है।

आर्थिक और पर्यावरणीय चिंताएं

कुणाल ने अपनी निराशा को केवल यात्रा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि बड़े संरचनात्मक मुद्दों से भी जोड़ा:

  1. मुद्रा अवमूल्यन (Currency Depreciation): उन्होंने बताया कि भारत में किए गए निवेश कागज पर भले ही अच्छे दिखें, लेकिन वैश्विक स्तर पर रुपये की गिरती वैल्यू के कारण असली रिटर्न बहुत कम रह जाता है।

  2. प्रदूषण और स्वास्थ्य: उन्होंने भारत में हवा की खराब गुणवत्ता (Air Quality) पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि यह प्रदूषण शारीरिक रूप से महसूस होता है और वैश्विक रैंकिंग में भी दिखता है, लेकिन सुधार की कोई बड़ी कोशिश नजर नहीं आती।


हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025: भारत की स्थिति

कुणाल की यह निराशा आंकड़ों में भी झलकती है। हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार:

  • भारत की रैंक: गिरकर 85वें स्थान पर पहुँच गई है। भारतीय नागरिक केवल कुछ ही देशों में वीजा-फ्री एंट्री पा सकते हैं।

  • टॉप देश: सिंगापुर दुनिया का सबसे शक्तिशाली पासपोर्ट बना हुआ है (195 देशों में वीजा-फ्री पहुंच)। इसके बाद दक्षिण कोरिया और जापान का नंबर आता है।

निष्कर्ष

कुणाल कुशवाहा का यह पोस्ट 'ग्लोबल इंडियन' की उस सच्चाई को दर्शाता है जहाँ प्रतिभा और पैसा होने के बावजूद, राष्ट्रीय पहचान (पासपोर्ट) उनके वैश्विक विस्तार में बाधा बन जाती है। यह पोस्ट भारत सरकार के लिए एक संकेत भी है कि पासपोर्ट की शक्ति बढ़ाना और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को वीजा-मुक्त यात्रा की दिशा में ले जाना अब केवल प्रतिष्ठा की बात नहीं, बल्कि विदेशों में रह रहे भारतीयों की 'इज ऑफ लिविंग' (Ease of Living) के लिए अनिवार्य हो गया है।


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