पाकिस्तान इस समय एक कठिन कूटनीतिक चौराहे पर खड़ा है। एक तरफ वह अपनी चरमराती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अमेरिका के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करना चाहता है, तो दूसरी तरफ गाजा में शांति सेना भेजने के अमेरिकी दबाव ने इस्लामाबाद की रातों की नींद उड़ा दी है। नवनियुक्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 'गाजा 20-पॉइंट योजना' के केंद्र में मुस्लिम देशों की सेनाओं को गाजा में तैनात करना शामिल है, और इस योजना में पाकिस्तान की भूमिका को सबसे अहम माना जा रहा है।
प्रस्तुत लेख में हम इस जटिल स्थिति और इसके संभावित परिणामों का विश्लेषण करेंगे।
ट्रंप की गाजा योजना और 'इंटरनेशनल स्टेबलाइजेशन फोर्स' (ISF)
डोनाल्ड ट्रंप का प्रस्ताव है कि गाजा में युद्ध के बाद शांति व्यवस्था बहाल करने और पुनर्निर्माण के लिए एक 'इंटरनेशनल स्टेबलाइजेशन फोर्स' (ISF) का गठन किया जाए। इस बल में मुख्य रूप से उन मुस्लिम देशों के सैनिकों को शामिल करने का सुझाव है जिनके अमेरिका के साथ अच्छे संबंध हैं।
ISF की मुख्य जिम्मेदारियां:
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गाजा में सुरक्षा और कानून व्यवस्था बहाल करना।
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मलबे में तब्दील हो चुके बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण।
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मानवीय सहायता का वितरण सुनिश्चित करना।
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हमास के प्रभाव को कम कर एक नई प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जमीन तैयार करना।
मार्को रुबियो का बयान और अमेरिकी दबाव
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने हाल ही में पुष्टि की है कि पाकिस्तान ने इस मिशन का हिस्सा बनने में 'रुचि' दिखाई है। रुबियो के अनुसार, अमेरिका पाकिस्तान की इस पेशकश की सराहना करता है, लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी देश से अंतिम प्रतिबद्धता मांगने से पहले उन्हें मिशन की रूपरेखा और सुरक्षा गारंटी के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाएगी।
हालांकि, पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि वॉशिंगटन लगातार पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर पर दबाव बना रहा है। जनरल मुनीर जल्द ही अमेरिका की यात्रा पर जा सकते हैं, जहाँ उनकी ट्रंप से मुलाकात संभावित है। यह पिछले छह महीनों में उनकी तीसरी मुलाकात होगी, जो यह संकेत देती है कि गाजा का मुद्दा द्विपक्षीय वार्ता के केंद्र में है।
पाकिस्तान के लिए 'आगे कुआं, पीछे खाई'
पाकिस्तान सरकार और सेना के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं है। इसके पीछे कई बड़े कारण हैं:
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घरेलू आक्रोश: पाकिस्तान की जनता में इजरायल के खिलाफ और फिलिस्तीन के समर्थन में भारी भावनाएं हैं। यदि पाकिस्तानी सेना गाजा में उतरती है और वहां हमास (जिसे पाकिस्तानी अवाम का एक बड़ा हिस्सा प्रतिरोध का चेहरा मानता है) के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है, तो पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बन सकती है।
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हमास और हथियार: पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान हमास को निशस्त्रीकरण करने का काम नहीं करेगा। पाकिस्तान केवल 'शांति स्थापना' और 'पुनर्निर्माण' तक सीमित रहना चाहता है।
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आर्थिक मजबूरी: पाकिस्तान को IMF के कर्ज और अमेरिकी समर्थन की सख्त जरूरत है। अमेरिका को नाराज करना पाकिस्तान की आर्थिक सेहत के लिए घातक हो सकता है।
निष्कर्ष
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ताहिर हुसैन अंद्राबी ने फिलहाल किसी भी अंतिम निर्णय से इनकार किया है। लेकिन जनरल आसिम मुनीर की वाशिंगटन यात्रा यह तय करेगी कि पाकिस्तान अपनी वैश्विक छवि सुधारने के लिए गाजा की दलदल में उतरने का जोखिम उठाएगा या नहीं। यह न केवल पाकिस्तान की विदेश नीति की परीक्षा है, बल्कि जनरल मुनीर के नेतृत्व की भी सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है।