भारतीय क्रिकेट के वर्तमान परिदृश्य में चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर और हेड कोच गौतम गंभीर की जोड़ी ने एक सख्त संदेश दिया है: 'नाम चाहे कितना भी बड़ा हो, घरेलू क्रिकेट खेलना अनिवार्य है।' इसी नीति के तहत टीम इंडिया के दो सबसे बड़े सितारे, विराट कोहली और रोहित शर्मा, वर्तमान में जारी विजय हजारे ट्रॉफी (वनडे फॉर्मेट) में अपनी-अपनी घरेलू टीमों के लिए मैदान पर उतरे हैं।
हालांकि, टूर्नामेंट के पहले दौर के मुकाबलों ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या विजय हजारे ट्रॉफी जैसा टूर्नामेंट इन दिग्गजों की फॉर्म और फिटनेस को परखने का सही पैमाना है, या यह केवल बीसीसीआई की अपनी 'धौंस' जमाने की एक कवायद मात्र है?
शतकों की 'बाढ़' और गिरता स्तर
विजय हजारे ट्रॉफी के पहले ही दिन (24 दिसंबर) जो आंकड़े सामने आए, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक भी हैं। पूरे देश में एक ही दिन में 22 शतक लगे।
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विराट कोहली: दिल्ली के लिए 101 गेंदों में 131 रन बनाए।
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रोहित शर्मा: मुंबई के लिए 94 गेंदों में 155 रन कूट दिए।
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अजीबोगरीब आंकड़े: सिर्फ 32 और 34 गेंदों में शतक लगे, बिहार जैसी टीम ने 574 रन बनाए और 400 से ज्यादा के लक्ष्य आसानी से हासिल हो गए।
जब किसी टूर्नामेंट में रन बनाना इतना आसान हो जाए कि वह 'मजाक' लगने लगे, तो वहां विराट और रोहित जैसे बल्लेबाजों की काबिलियत को कैसे परखा जा सकता है? ये दोनों खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 80 से ज्यादा शतक और 25 हजार से ज्यादा रन बना चुके हैं। क्या अरुणाचल या झारखंड के घरेलू गेंदबाजों के खिलाफ उनके शतक यह साबित कर सकते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए तैयार हैं? निश्चित रूप से नहीं।
दिग्गजों के खेलने से किसका नुकसान?
बीसीसीआई का तर्क है कि इससे घरेलू क्रिकेट की अहमियत बढ़ेगी। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि जब विराट और रोहित प्लेइंग इलेवन में आते हैं, तो वे उन दो युवा खिलाड़ियों की जगह छीन लेते हैं जिनके लिए यह मंच खुद को साबित करने का एकमात्र जरिया है। 15-20 साल का अनुभव रखने वाले दिग्गजों को ऐसे स्तर पर खिलाना जहाँ प्रतिस्पर्धा का अभाव हो, न तो उन दिग्गजों के लिए चुनौतीपूर्ण है और न ही युवाओं के लिए न्यायसंगत।
लोकप्रियता का दावा और कड़वी हकीकत
बोर्ड का एक और तर्क यह था कि बड़े खिलाड़ियों के खेलने से घरेलू क्रिकेट प्रमोट होगा। लेकिन हकीकत इसके उलट रही:
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प्रसारण का अभाव: जिन मैचों में विराट और रोहित खेल रहे थे, उनका न तो टीवी पर और न ही किसी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाइव टेलीकास्ट हुआ।
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स्टेडियम में पाबंदी: दिल्ली के मैच में तो दर्शकों के आने तक पर रोक थी।
जब प्रशंसक अपने चहेते सितारों को खेलते देख ही नहीं पा रहे, तो लोकप्रियता बढ़ने का दावा खोखला नजर आता है।
निष्कर्ष: 'इगो' की संतुष्टि या सही विजन?
BCCI और टीम मैनेजमेंट को यह समझना होगा कि हर खिलाड़ी के लिए एक ही पैमाना नहीं हो सकता। विराट और रोहित ने ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका जैसी कठिन पिचों पर रन बनाकर अपनी फॉर्म पहले ही साबित कर दी है। उन्हें विजय हजारे ट्रॉफी में खेलने के लिए मजबूर करना कोच और सेलेक्टर्स की 'इगो' को तो संतुष्ट कर सकता है कि उन्होंने सुपरस्टार्स को घरेलू मैदान पर उतार दिया, लेकिन भारतीय क्रिकेट के भविष्य और घरेलू टूर्नामेंट की गुणवत्ता के लिहाज से यह फैसला बेमानी नजर आता है।