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बांग्लादेश में हिंदू की मॉब लिंचिंग पर भड़की कांग्रेस, प्रियंका बोलीं- अल्पसंख्यकों पर बढ़ती हिंसा का मामला उठाए सरकार

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Posted On:Saturday, December 20, 2025

बांग्लादेश एक बार फिर हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता की आग में जल रहा है। चुनाव से ठीक पहले देश के कई शहरों में आगजनी, तोड़फोड़ और हत्याओं का दौर शुरू हो गया है। राजनीतिक कार्यकर्ता उस्मान हादी की हत्या ने जहाँ राजनीतिक माहौल गरमाया, वहीं कथित ईशनिंदा के नाम पर एक हिंदू युवक की नृशंस मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है।

दीपू चंद्र दास की हत्या: मानवता पर कलंक

मैमनसिंह शहर में एक फैक्ट्री में काम करने वाले 25 वर्षीय हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की हत्या की घटना ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं। कथित ईशनिंदा के आरोप में उग्र भीड़ ने न केवल उसे पीट-पीट कर मार डाला, बल्कि उसके शव को आग के हवाले भी कर दिया। यह घटना दर्शाती है कि पड़ोसी देश में कानून व्यवस्था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की स्थिति कितनी चिंताजनक हो चुकी है।

प्रियंका गांधी और विपक्ष का कड़ा रुख

भारत में इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस कृत्य की कड़ी निंदा की। उन्होंने इसे 'मानवता के खिलाफ अपराध' करार देते हुए कहा:

"किसी भी सभ्य समाज में धर्म, जाति या पहचान के आधार पर भेदभाव और हत्या स्वीकार्य नहीं है। बांग्लादेश में हिंदू, ईसाई और बौद्ध अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा भारत सरकार को वहां की सरकार के समक्ष मजबूती से उठाना चाहिए।"

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी केंद्र सरकार की 'चुप्पी' पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने चिंता जताई कि भारत सरकार की निष्क्रियता पड़ोसी देश में भारत विरोधी ताकतों के मनोबल को बढ़ा सकती है।

शेख हसीना के पतन के बाद का घटनाक्रम

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का यह सिलसिला पिछले साल शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से और तेज हुआ है। सत्ता परिवर्तन के बाद मची अराजकता का शिकार अक्सर वहां के अल्पसंख्यक समुदाय हो रहे हैं। मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में सैकड़ों मंदिरों, घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया है।

भारत के लिए चुनौतियां

बांग्लादेश में अशांति का सीधा असर भारत पर पड़ता है।

  1. सुरक्षा चिंताएं: सीमावर्ती राज्यों (पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा) में घुसपैठ और शरणार्थी संकट की संभावना बढ़ जाती है।

  2. राजनयिक दबाव: भारत सरकार को एक तरफ अपने पड़ोसी देश के साथ संबंध बनाए रखने हैं, तो दूसरी तरफ वहां प्रताड़ित हो रहे अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करनी है।

  3. कट्टरपंथ का उदय: बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरपंथी ताकतों का प्रभाव भारतीय सीमा के आसपास के क्षेत्रों में भी अस्थिरता पैदा कर सकता है।

निष्कर्ष

बांग्लादेश में मौजूदा हालात केवल एक आंतरिक मामला नहीं रह गए हैं, बल्कि यह एक गंभीर मानवीय संकट में तब्दील हो रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि बांग्लादेश की अंतरिम या भावी सरकार अपने सभी नागरिकों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, की सुरक्षा की गारंटी ले। बिना सुरक्षा और न्याय के, क्षेत्र में शांति की कल्पना करना असंभव है।


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